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बहती हवा पर पहली आकृति : शुभम विश्वकर्मा
[ निर्देशक- स्लीपिंग ]

कवर पेज बदलने में पूरा डेढ़ साल लग गया| फिल्म शुरू होने से पहले जो विज्ञापन चलता है धूम्रपान का, धूम्रपान जानलेवा है। उसी तरह फिल्म भी है बिल्कुल है ये मैंने जिया है। जिससे मुझे प्यार है उसके आस पास होते ही मेरे अंदर का खून जलने लगता है, सांस लेने में तकलीफ होने लगती है लगता है जैसे पृथ्वी पर आक्सीजन खत्म होने लगी है। वैसे ही जब ये फिल्म शुरू कर रहा था उस समय लग रहा था बस तीन दिन और शूट खत्म, तीसरी रात एडिटिंग और उसी के साथ म्यूजिक भी। लेकिन सब किसी थ्रिलर फिल्म की तरह उलट पुलट हो गया। पहले ही दिन मजा नहीं आया शूट में कुछ भी ठीक नहीं हुआ और धीरे धीरे फिल्म रुक गयी। पहले लगता था फिल्म लिखने में कुछ भी नहीं है। फिल्म शुरू करने में कोई बात है, फिर धीरेधीरे समझ आया कि शुरू तो कर दोगे लेकिन उसे पूरा करने का क्या? ये फिल्म कई बार शुरू हुई और हमेशा अधूरी रही। फिर जैसे तैसे प्रि-प्रोडक्शन खत्म हुआ, अब पोस्ट प्रोडक्शन। ये भी पूरा हुआ लेकिन कोई मतलब नहीं निकला न एडिटिंग ठीक हुई न म्यूजिक | लगा जैसे कचरा बना लिया हो। मन किया कहीं किसी कोने में मुंह छुपाकर बैठ जाऊं और कभी बाहर ही न निकलूं। आखिर में तय किया इस पर काम नहीं करूंगा, पहले फिल्म से जुड़ी चीजें पता करूंगा सीखूंगा तब जाकर फिल्म की ओर बढूंगा अगली फिल्म की ओर। ये सब तो मैं पहले ही कर चुका हूं, फिर कैसे सीखा जाए? पहले मैं "विहान ड्रामा वर्क्स " (भोपाल) में था। जिस समय मैने ग्रुप छोड़ा या निकाला गया ठीक उस समय से पहले एक नाटक का मैं हिस्सा था किसी तरह। तोत्तो चान। नाटक में एक गाना है जिसे हेमन्त सर ने लिखा है.. कुछ इस तरह- "सिर्फ सुनोगे तो भूल जाओगे, देखोगे जब याद रह जायेगा, करके देखोगे तो समझ जाओगे"।जादू है इस गाने में। इससे पहले भी मैं कई नाटकों का हिस्सा रहा लेकिन सीखने के लिए मैने कुछ किया नहीं। मैं सिर्फ बैठता था और सुनता था। सोचता था बस एक मौका मिले। और समझ आया अब तो मौका है। मतलब सीखने के लिए करके देखना पड़ेगा। करके देखना। किसी तरह हिम्मत जुटाई और तय किया बिना पूरा किये नहीं छोडूंगा। जब आप किसी परेशानी में फंसे होते हो चाहे वो कितनी ही बड़ी मुसीबत हो आईने के सामने जाओ अपनी आंखों में देखो और अपने आप से कहो "विश्वास रखो मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा" उस समय आप सर्वशक्तिमान होते हो। अपने आप से कहने में बहुत हिम्मत चाहिए मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। मैं चीख रहा था लेकिन मुझे अपनी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। वहां कोई और भी था जिसने मुझे सुना "प्रकृति |" प्रकृति हमें हमेशा सुनती है एक मां की तरह और एक पिता की तरह हमारी सारी इच्छाएं पूरा करती है। इस प्रोसेस में मैं जितनी बार भी मायूस हुआ हूं अपनी दोनो हथेलियाँ खोल प्रकृति से मांगा है और उसने हमेशा मुझे सुना है। ये बहुत कम है आप सभी से शेयर करने के लिए। पूरी प्रोसेस शेयर करुंगा तो एक किताब कम पड़ जाएगी। हां एक बात और सर (जानबूझकर आपका नाम नहीं लिख रहा हूं नाम लिखना बहुत छोटा होगा जिस तरह मेरे मां पिता ने मुझे जन्म दिया है श्रेय के तौर पर ही सही यदि मैं मां पिता से कहूं आपने मुझे जन्म दिया मैं आपका बहुत शुक्रगुजार हूं और एक ढोल कंधे पे टांगूं और यही बात पूरे मोहल्ले और शहर भर में कहूं। ये बहुत छोटा होगा। आपने जितना भी बताया उन सबने मिलकर मेरे अंदर एक नये व्यक्ति के रुप में जन्म लिया फिर आप भी एक जन्मदाता की तरह ही हुए।) फिल्म क्या होती है इसके बारे में आपसे ही सीखा है | आपने बहुत सारी फिल्में भी दिखाईं। आपका सानिध्य अभि तक के जीवन में सबसे प्रभावशाली और अमूल्यवान रहा है। मैं आपसे मिलने भी नहीं आया। जानबूझकर भी। हम घर मैं रहकर मां बाप से सब कुछ नहीं सीख सकते जो हम अपनी दम पर बाहरी दुनिया में रहकर सीखते हैं। और आपका सामना करने की हिम्मत भी नहीं है। जितनी बार भी हिम्मत जुटाई है आप हमेशा शहर से बाहर रहे हैं। मैं हमेशा बचपन में रहना चाहता हूं उस समय में जब हम चलना सीखते हैं खडे होना सीखते हैं। कई बार गिरते हैं। हम सहारा भी लेते हैं। सहारा से हमें थोड़ा आसान होगा लेकिन हम उन सारे अनुभवों से वंचित रह जायेंगे जो बिना किसी सहारे के हमें मिलते हैं। मुझे बहुत खुशी है कि ये फिल्म एक बार में पूरी नहीं हुई जिसकी वजह से मेरे कई बहुत अच्छे दोस्त बने। कई सारे नये लोगों से मिला | अपने ही शहर में कई सारी नयी जगहों पर जा पाया। Anurag Tiwari। Faraz Khan। Harsh Pandey। Ajit Bhardwaj। AlokTandon। Rashish sir। Chiranjeev Joshi। Raghuwanshi Lucky आप सभी को शुक्रिया नहीं कहूंगा। शुक्रिया के तौर पर भी यही कहूंगा | हमेंशा इसी तरह ताकत बने रहना। Dharmendra Ahirwar तुम्हारे साथ रहना बिना पंखों के उड़ने जैसा है। अब तो डर भी बना रहता है जब भी तुम शहर में होते हो पता नहीं कब क्या करना पड़ जाये। 





Shubham Vishwakarma (right) director of 'Sleeping' and Cinematographer Roshan Verma, star cast of sleeping Dharmendra Ahirwar (actor) is in left

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